मरी हुई ब्लू व्हेल खतरनाक क्यों होती है
धरती के सबसे बड़े जीव ब्लू व्हेल का वजन डेढ़ लाख किलो से भी ज्यादा हो जाता है। इसकी लंबाई करीब 100 फीट यानी एक 10 मंजिला इमारत के बराबर हो जाती है। ब्लू व्हेल ना सिर्फ वर्तमान में इस धरती का सबसे बड़ा जीव है बल्कि आज तक के पृथ्वी के इतिहास में डायनासोर समेत जितने भी जीव रहे है,चाहे उन जीवों ने धरती पर विचरण किया हो या पानी में, उन सभी जीवो में ब्लू व्हेल सबसे बड़ा और भारी है। परंतु इतना विशालकाय होने के बावजूद भी प्रकृति की यह रचना हम इंसानों के लिए बिल्कुल भी घातक नहीं होती क्योंकि व्हेल शिकार नहीं करते। इतना बड़ा आकार होने के बावजूद भी इन का खाना बहुत ही छोटा होता है। यह व्हेल्स बड़ी मात्रा में पानी को अपने मुंह में लेकर पानी को फिल्टर करके पानी में मौजूद छोटी जीवो को खाती है।
यह जीव ज्यादातर आकार में 1 सेंटीमीटर से छोटे ही होते हैं।
ब्लू व्हेल्स 1 दिन में 4 करोड़ से भी ज्यादा छोटे जीव खा जाते हैं। यानी हमें ब्लू व्हेल से कोई भी खतरा नहीं है परंतु तभी तक जब तक वह जिंदा है। मरने के बाद एक व्हेल किसी भी इंसान के लिए बहुत ज्यादा घातक हो सकती है। इसलिए कहा जाता है कि कभी भी मरी हुई व्हेल के पास नहीं जाना चाहिए। क्योंकि मरी हुई व्हेल के शरीर के अंदर कभी भी एक भारी विस्फोट हो सकता है। इस विस्फोट से 70 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से ब्लू व्हेल के अंदर का मांस व खून बाहर आता है।बेहद रफ्तार से निकला हुआ यह मांस किसी भी इंसान को काफी नुकसान पहुंचा सकता है, या हो सकता है कि वह इंसान व्हेल के शरीर के मांस के टुकड़ों के नीचे दबकर ही मर जाए। यह विस्फोट क्यों होता है? आइए इसे जानने की कोशिश करते हैं।

दोस्तों अपने आकार के कारण व्हेल सबसे आकर्षक जीव है। इसलिए समुद्र के किनारे के आसपास जब कभी यह तैर रही होती है तो बड़ी संख्या में लोग इसे देखने के लिए आकर्षित हो जाते हैं। गहरे पानी में भी बहुत से सैलानी इसे देखने के लिए जाते हैं। अक्सर जब कोई व्हेल मर जाती है, समुद्र की जोरदार लहरों के कारण व्हेल बहकर किनारों की तरफ आ जाती है। अगर आपको भी कोई ऐसे ही व्हेल दिख जाए तो आप भी तुरंत उसे देखने के लिए उसके नजदीक दौड़े चले जाएंगे।परंतु समुद्र के किनारे मरे हुए व्हेल को देखने वाली भीड़ में कभी भी शामिल नहीं होना चाहिए। आप व्हेल को पास से देख सकते हैं मगर ध्यान रहे कि आपके और व्हेल के बीच कम से कम 70 फीट की दूरी हो, कभी भी व्हेल को छूने की या उसके ज्यादा पास जाने की कोशिश ना करें।
क्योंकि मरी हुई व्हेल के अंदर हुआ विस्फोट आपके लिए बहुत ज्यादा घातक हो सकता है। जब कोई व्हेल मरती है तो जाहिर है उसके नसों में बहने वाला खून रुक जाता है और सांस लेने की प्रक्रिया बंद हो जाती है। सांस लेने की प्रक्रिया रुक जाने के कारण व्हेल के शरीर के अंदर भारी मात्रा में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड गैस बाहर नहीं निकल पाती। यह कार्बन डाइऑक्साइड व्हेल के शरीर के अंदर रसायनों के साथ मिलकर उसकी कोशिकाओं में एक तरह का तेजाब बनाने का काम करती है। इस तेजाब की वजह से व्हेल की कोशिकाएं धीरे-धीरे गलने लगती हैं। तेजाब के प्रभाव से व्हेल की त्वचा भी अंदर से कमजोर व पतली होने लग जाती है।
इसके अलावा व्हेल के फेफड़ों व पेट के अंदर करोड़ों तरह के बैक्टीरिया होते हैं। ये बैक्टीरिया उसके पेट में खाना पचाने का काम करते हैं। परंतु व्हेल के मरने के बाद ऑक्सीजन ना मिल पाने के कारण यह बैक्टीरिया भी मरने लगते हैं। ऑक्सीजन इस्तेमाल न करने वाले बैक्टीरिया की संख्या तेजी से बढ़ने लग जाती है। यह बैक्टीरिया व्हेल के शरीर के अंदर मौजूद चर्बी, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन खाने लगते हैं। जिसकी वजह से व्हेल के शरीर के अंदर के सारे अंग नष्ट होने लग जाते हैं।
यह वही प्रक्रिया होती है जिसमें अपशिष्ट पदार्थ के सड़ने से बायोगैस का निर्माण होता है। मरने के बाद शरीर के अंगों के गलने व गैस बनने की प्रक्रिया सिर्फ व्हेल में नहीं बल्कि इंसानों समेत सभी जीवो में होती है। लेकिन बाकी जीव व्हेल्स के मुकाबले काफी छोटे हैं व इनके शरीर में इन गैसों का निर्माण भी कम होता है। इतनी कम मात्रा में बनी गैस आसानी से नाक या मुंह जैसे छिद्रों से बाहर निकलती रहती है। चूंकि व्हेल काफी बड़ा जीव है इसलिए उसके शरीर के अंदर ऐसे ही गैसों का निर्माण भी अधिक मात्रा में होता है और बेहद तेजी से होता है।वहीं दूसरी ओर व्हेल का शरीर इतना भारी होता है कि वह सिर्फ पानी में तैर सकता है।
जमीन पर मरी पड़ी इतनी भारी व्हेल का वजन का दबाव इसके नाक व मुंह जैसे अंगों को बंद कर देता है यानी एक तरह से व्हेल खुद के ही वजन के नीचे दब जाती है। व्हेल की त्वचा काफी मोटी व मजबूत होती है इसलिए इन गैसों का दबाव कई दिनों तक वह झेल लेती है। परंतु समय के साथ व्हेल के शरीर के अंदर गैसों का दबाव बढ़ता रहता है और त्वचा कमजोर और पतली होती रहती है तथा नतीजा होता है किसी भी वक्त एक बड़ा विस्फोट। बहुत बड़ी मात्रा में तेजी से गैसेँ बाहर आती हैं और इन गैसों के साथ ही खून और मांस के टुकड़े भी भारी मात्रा में बाहर निकलते हैं।

यह विस्फोट वहेल के आसपास मौजूद इंसान या अन्य जानवरों को सैकड़ों फिट तक दूर धकेल सकता है और गंभीर चोट पहुंचा सकता है। दोस्तों जब किसी वहेल की फूली हुई लाश समुंदर किनारे पड़ी होती है तो समुंदरी कर्मचारियों के लिए यह लाश एक बड़ी मुसीबत बन जाती है क्योंकि यह लाश सड़ती रहेगी जिससे आसपास के कई किलोमीटर का इलाका दुर्गन्ध से भर जाएगा। इस समस्या से निजात पाने के लिए समुद्री कर्मचारियों को वहेल की लाश को कहीं दबाके ठिकाने लगाने की आवश्यकता होती है।
ये भी पढ़े : पनडुब्बी में सैनिकों का जीवन कैसा होता है
लेकिन समस्या यह है कि डेढ़ लाख किलो भारी जीव को भला कैसे हटाया जाए। ब्लू व्हेल को हटाने के लिए किसी क्रेन की आवश्यकता होती है परंतु कई बार क्रेन से हटाते वक्त दुर्घटना हो जाती है। क्रेन से हटाते वक्त ही ब्लू व्हेल के शरीर में विस्फोट हो जाता है। ऐसा इतिहास में कई बार हो भी चुका है। इन्हीं सब कारणों की वजह से आप को सावधान रहने की आवश्यकता है कि आप समुद्र के किनारे मरी पड़ी किसी ब्लू व्हेल के ज्यादा नजदीक ना जाएं। उम्मीद है आपको पता लग चल गया होगा कि क्यों जिंदा से ज्यादा एक मरी हुई ब्लू व्हेल ज्यादा खतरनाक होती है।