मिर्ज़ा ग़ालिब का जीवन परिचय और इतिहास पढ़िए पूरी जानकारी
नमस्कार दोस्तों ! आज हमारे ब्लॉग में आप सभी का स्वागत है | आज हम आप के लिए ले के आये हें उर्दू के महान कवि मिर्ज़ा ग़ालिब की कहानी | दोस्तों उर्दू शायरी में किसी सख्श का नाम सबसे ज्यादा लिया जाता है वह है मिर्ज़ा ग़ालिब |
मिर्ज़ा ग़ालिब मुग़ल शासन के दौरान ग़ज़ल गायक कवि और शायर हुआ करते थे, उर्दू भाषा के फनकार और शायर मिर्ज़ा ग़ालिब का नाम आज भी काफी अदब से लिया जाता है | उनकी द्वारा लिखी गयी गज़ले और शायरी आज भी युवायों और प्रेमी जोड़ो को आज भी अपनी और आकर्षित करती है |

मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरी बेहद ही आसान और कुछ पंक्तियों में हुआ करती थी | जिस के कारण जन मन में भू थी |
आज हम मिर्ज़ा ग़ालिब के जीवन से जुडी कुछ जानकारी आन्शिप्त और पहलू बतायेंगे | मिर्ज़ा ग़ालिब उर्दू और फारसी भाषा के महान शायर और गायक थे| उन्हें उर्दू भाषा का आज तक का सबसे महान शायर माना जाता है |
Mirza Ghalib date of Birth | मिर्ज़ा ग़ालिब का जन्म
फारसी शब्दो का हिन्दी से जुडाव का श्रेय ग़ालिब को ही जाता है| इसी कारण उन्हें मीर ताकि मीर भी कहा जाता है | मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा लिखी गई शायरी हिन्दी और फारसी भाषा में भी मौजूद है | दोस्तों मिर्ज़ा ग़ालिब का जनम २७ दिसंबर १७९७ को आगरा के काला महल में हुआ था |
उनके पिता का नाम मिर्ज़ा अब्दुल्लाह बैघ खान और माता का नाम इज्ज़त निसा बैघ था. मिर्ज़ा ग़ालिब का असल नाम मिर्ज़ा असद उल्लाह बैघ खान था| उनके पूर्वज भारत में नही बल्कि तुर्की में रहा करते थे |

भारत में मुगलों के बढते प्रभाव को देखतें हुए सन १७५० में इनके दादा मिर्ज़ा कोबान बैघ खान समरकंद छोड़ कर भारत में आ के बस गये | मिर्ज़ा ग़ालिब क दादा सैनिक परष्ट भूमि से जुड़े हुए थे | मिर्ज़ा अब्दुल्लाह बैघ खान ने आगरा की इज्ज़त निशा बेगम से निकाह किया , और वो ससुर के घर में रहने लग गये | उनके पिता लखनऊ में निज़ाम के यहाँ काम करते थे |
मात्र ५ साल की ऊम में साल १८०३ में इनके पिता की मृत्यु हो गई | जिसके बाद कुछ सालो तक मिर्ज़ा अपने चाचा नासुरुल्लाह बैघ जो के ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी में सैनानी अधिकारी के साथ रहे लकिन उसके बाद उनके चाचा से मिर्ज़ा ग़ालिब का जीवन यापन चाचा की आने वाली पेंशन से होने लगा |
मिर्ज़ा ग़ालिब की सिक्षा | Mirza Galib’s Education :
मिर्ज़ा ग़ालिब की शिक्षा के बारे कोई प्रयाप्त जानकारी नही है | जितनी भी जानकारी मिलती है उनके द्वारा लिखी हुई शायरियो में मिलती है | मिर्ज़ा ग़ालिब ११ साल की उम्र में ईरान से दिल्ली आये एक नव्रित मुस्लिम के साथ रह कर फारसी और उर्दू सीखना शुरू कर दी मिर्ज़ा द्वारा ज्यादा तर ग़ज़ल उर्दू और फारसी में लिखी गयी हें|
जो के पारम्पिक पंक्ति और सोंद्रह रस से भरपूर है |
दोस्तों मिर्ज़ा ग़ालिब ने जीवन में शादी को कैद की तरह बताया है | इसका सबूत उनके दोस्त की पत्नी की मौत है के शव पत्र में देखने को मिलता है |
जिस पत्र में मिर्ज़ा ने लिखा था के मुझे खेद है लेकिन उसे इस लिए भी कल्पना करो वह अपनी ज़ंजीरो से मुक्त हो गयी और यहाँ मैं आधी शताब्दी से अपने फंदे को ले कर घूम रहा हूँ |
Mirza Ghalib family | मिर्ज़ा ग़ालिब का परिवार और वैवाहिक जीवन
मिर्ज़ा ग़ालिब के वैवाहिक जीवन में एक दुखद पक्ष यह भी है की ग़ालिब को सात संताने हुई थी, उन सातो बच्चो में से एक भी नही बच पाई | इस वजह से उन्हें दो आदतें लग गयी एक शराब और दूसरी जुआ यह दोनों आदते मरते दम तक उनके साथ नही छोड़ पाई तेरह साल की उम्र में ही शादी होने के बाद मिर्ज़ा अपनी बेगम और भाई युसफ खान के साथ दिल्ली आ गये |
मिर्ज़ा ग़ालिब का बहादुर शाह ज़फर के बेटे को शायरी की तालीम देना
दिल्ली आने के बाद उन्हें यह पता लगा मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फर के बेटे है | फकरुदीन मिर्ज़ा को शेरो शायरी सिखाने के लिए शायर की ज़रूरत थी | जिसकी बाद मिर्ज़ा ग़ालिब बहादुर शाह ज़फर के बेटे को शायरों शायरी की गहरियो की तालीम देने लगे शेरो शायरी के बहुत बड़े प्रशंशक होने के साथ साथ कवि भी थे |
इसी कारण मिर्ज़ा की ग़ज़ल शेरो शायरी पढ़ने में रूचि लिया करते थे | धीरे धीरे मिर्ज़ा ग़ालिब दरबार के खास दरबारियो में शामिल हो गये. उनकी शायरियो में उनके असफल प्यार और उनके जीवन पीड़ा को नहीं दर्शाया गया बल्कि जीवन शास्त्र के रहस्य वाद को भी दर्शाया गया है
१८५० में शेरशाह बहादुर शाह मिर्ज़ा ग़ालिब को तवीरो मुल्क और नज़द उल दूबह के ख़िताब से नवाज़ा बाद में उन्हें मिर्ज़ा नुसता का ख़िताब भी मिला १८५७ में की क्रांति के बाद मिर्ज़ा ग़ालिब की ज़िन्दगी पूरी तरह बदल गयी | स्वतंत्र संग्राम में मुग़ल सेना ब्रिटिश सेना से हार मिली इसके बाद बहादुर शाह ज़फर को अंग्रेजो ने रंगून भेज दिया इस से मुग़ल दरबार नष्ट हो गया |
![Bahadur Shah Zafar
[ Mughal Emperor] मिर्ज़ा ग़ालिब](https://hindigyanpost.com/wp-content/uploads/2021/12/bahadur-shah-zafar.jpg)
[ Mughal Emperor]
मिर्ज़ा को भी आय मिलना बन्द हो गयी इसके दोरान मिर्ज़ा ग़ालिब के पास खाने के भी पैसे नही थे | छोटे छोटे समारोह में जा कर आपनी शायरी से लोगों को परभावित करने लग गये मिर्ज़ा ने अपने जीवन की बेहतरीन शायरी इसी समय में लिखी इसी कारण मिर्ज़ा आम लोगो का शायर भी कहा जाता है |
अंतिम साल गुमनामी में कटे लेकिन जीवन के अंतिम समह तक हाज़िर जवाब रहे | अंतिम समय तक हाज़िर जवाब रहे, अंतिम समय में दिल्ली में महामारी फ़ैल गयी उन्हों ने अपनी चहेते शागिर्द को तंत भरे लिहाज में पत्र लिख के बताया ऐ ऐसी हवा है ७० वर्ष के बूड़े बुडिया को ना मार सकी |
मिर्ज़ा ग़ालिब की मृत्यु : Mirza Galib’s Death
१५ फरवरी १८६९को मिर्ज़ा ग़ालिब की मृत्यु हो गयी |
लेकिन हेरित की बात यह है मिर्ज़ा ग़ालिब जेसे महान कवि की मृत्यु होने के दो दिन पश्चात् ही यह खबर पहली बार उर्दू अख़बार अकमल उल अख़बार में छपी रोचक बात यह है की शादी को कैद बताने वाले इस शायर की पत्नी उम्रा बेगम की मौत एक साल बाद हो गयी |
ऐसे ही दिलचस्प कहानी और वर्ल्ड अफेयर्स यहाँ पढ़े : Click Here
दोनों की कब्र दिल्ली के निज्जामुदीन इलाके में बनाई गयी दोस्तों कैसे लगा मिर्ज़ा ग़ालिब के जीवन के बारे में जानकर | ऐसी ही रोमांचक कहानिया पढने के लिए हमारे ब्लॉग वर्ल्ड अफेयर्स को अभी सब्सक्राइब कर ले दायीं साइड में निचे की और दिए गये बेल आइकॉन को प्रेस कर ले धन्यवाद |